ऑटोमोबाइल न्यूज़ डेस्क, नई दिल्ली। हर रोज हजारों व्हीकल्स को बेचा जाता है। इनमें अलग अलग तरह के फीचर्स को दिया जाता है। लेकिन एक पार्ट ऐसा होता है जो सभी तरह के व्हीकल्स (कार, बाइक, स्कूटर, ट्रक, बस, ट्रैक्टर) में जरूर यूज किया जाता है और इसे इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर के नाम से जानते हैं। इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर कितने टाइप (types of instrument clusters) के होते हैं और इसमें से किससे सबसे ज्यादा फायदा मिलता है। इस रिपोर्ट में पढ़ते हैं।
तीन टाइप के होते हैं Instrument Cluster
किसी भी तरह के व्हीकल में इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर को दिया जाता है। नॉर्मली यह तीन टाइप के होते हैं। एनालॉग इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर, सेमी डिजिटल इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर और डिजिटल इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर। तीनों के अलग अलग काम होते हैं।
एनालॉग Instrument Cluster
एनालॉग इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर सबसे पुराना क्लस्टर है। इसे 1910 में व्हीकल्स में दिया गया था और तब से अब तक इसका यूज हर तरह के व्हीकल में होता आ रहा है। इस तरह के क्लस्टर में मीटर होता है और उसके ऊपर एक सुई होती है जो ड्राइवर को जानकारी देती है। जब व्हीकल चलाया जाता है तो यह सुई अपनी स्पीड के मुताबिक उस नंबर के ऊपर आ जाती है, जिससे स्पीड का पता चलता है।
सेमी डिजिटल इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर
एनालॉग के बाद सेमी डिजिटल इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर आता है। यह एनलॉग और डिजिटल इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर से मिलकर बनाया जाता है। इसमें सुई और नंबर के साथ ही एक स्क्रीन भी होती है, जिसमें और कई तरह की जानकारी मिलती है।
फुली डिजिटल इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर
फुली डिजिटल इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर में सारी जानकारी डिजिटल तरीके से दिखाई जाती है। व्हीकल की स्पीड, इंजन टेंपरेचर, आरपीएम या कोई भी दूसरी जानकारी इस तरह के क्लस्टर में डिजिटल तरीके से दिखाई देती है। इनमें किसी भी तरह के मीटर के मुकाबले सबसे ज्यादा पार्ट लगाए जाते हैं जो इसे काफी जटिल भी बना देते हैं। इसका फायदा (digital vs analog cluster) यह होता है कि इस तरह के मीटर में छोटा सा भी बदलाव (benefits of advanced car instrument panels) आसानी से दिखाई दे जाता है, जो बाकी क्लस्टर में नहीं हो पाता।